
उत्तराखंड, देहरादून, पिछले लंबे अरसे से राज्य के मुखिया की बदली की बातें चल रही थीं, लेकिन वो कहते हैं न कि ऊपर वाले ने जितने दिन जिसको जहां दिये हैं उसको दुनिया की कोई ताकत भी नहीं हटा सकती. सीएम रावत पर भी यही बात लागू हुई.
गल्तियों का गल्ला इतना भर गया था, कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के फैसलों में वो दिखाई देने लगीं थीं. हर फैसले में त्रिवेंद्र कहीं न कहीं चूक करते जा रहे थे. शुरूवाती सालों में आला कमान इन्हें नज़रअँदाज़ करता रहा लेकिन पिछले एक साल में जिस तरह त्रिवेंद्र सरकार ने काम किया उसने न सिर्फ जनता के दिलों से सरकार को उतार दिया बल्कि खुद पार्टी के ही विधायक उनसे खुलेआम बगाबत करने लगे.
कभी सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार की बात को कभी देवस्थानम बोर्ड का अजीबो-गरीब फैसला. दो कभी राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण का ऐलान. लेकिन इस बार बजट सत्र में त्रिवेंद्र ने जो फैसला लिया वो उनकी कुर्सी में ताबूत की आखिरी कील साबित हुआ. ऐलान गैरसैंण को कमिश्नरी घोषित करने का.
त्रिवेंद्र के गैरसैंण को कमिश्नरी घोषित करते ही पार्टी के अंदर ही भूचाल आ गया. सुस्त पड़े नाराज़ विधायक मंत्री एकदम एक्टिव हो गये. और फौरन ही इस ऐलान का फरमान केंद्र में बैठे आला कमान तक पहुंचा दिया. साथ में ये भी साफ कर दिया अगर अब भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले चुनाव में पार्टी की जीत का भगवान ही मालिक है.
आला कमान ने बिना वक्त गंवाये फौरन ही दिल्ली से पर्यवेक्षक के तौर पार्टी के वरिष्ठ नेता छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह और पार्टी के महासचिव दुष्यंत गौतम को देहरादून भेजा गया. जिसके बाद का घटनाक्रम आपको इससे पहले वाली स्टोरी में पढ़ने को मिलेगा बस यहीं से त्रिवेंद्र की राजनीति के समीकरण बदल गये. दिल्ली तलब होने के बाद साफ हो गया था कि अब त्रिवेंद्र का जाना 100 फीसदी तय है. और हुआ भी ऐसा ही. पार्टी के तमाम नेताओं ने इन अटकलों को खारिज किया लेकिन यूके लाइव टीवी अपनी बात पर डटा रहा कि राज्य में सीएम बदले जाएंगे.
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