उत्तराखंड, चमोली, आपदा के बाद से ही ज़िला चमोली सुर्खियों में है . जलजले में हुई भीषण तबाही के बाद लापता हुए लोगों के रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए 7 वें दिन भी जद्दोजहद जारी है. वो भी तब जब वक्त रहते चमोली प्रशासन और शासन ने एतिहाती कदम उठा लिए. लेकिन इस सबके बीच ख़तरा अभी टला नहीं है. ख़तरे की सबसे बड़ी वजह है ऋषिगंगा पर बनी झील.
जियोल़ॉजिस्ट और उत्तराखंड पुलिस की एसडीआएफ के कमांडेंट नवनीत भुल्लर ऋषिगंगा के मुहाने पर 14 हज़ार फीट की ऊंचाई पर बनी इस झील पर मुआयना करने पहुंचे. तफ्तीश में पाया कि झील से लगातार पानी का रिसाव हो रहा, जो ख़तरे को कम करता है.झील से पानी रिसने की थ्यौरी को देखते हुए SDRF के कमांडेट ने कह दिया है कि झील से पानी खासी मात्रा में निकल रहा है इसलिए खतरे जैसी कोई बात नहीं.
लेकिन इसके उलट अगर कहें तो खतरा की बात फिलहाल के लिए तो टलती नज़र आ रही है, लेकिन खतरा पूरी तरह टल चुका है ये कहना जल्दवाजी होगी. क्योंकि वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान से रिटायर हुए सीनियर ग्लेय़शियर साइंटिस्ट डॉ. डीपी डोभाल इस झील को खासा चिंतिंत हैं. आपकी चिंता बेहद बाजिव भी नज़र आती है. दरअसल डॉ डोभाल का कहना है कि ये ठीक है कि ऋषिगंगा पर बनी झील से अच्छी मात्रा में पानी का लगातार रिसाव हो रहा है जिसके चलते झील का जो जल स्तर वो नहीं बढ़ेगा. लेकिन झील से पानी का रिसाव खतरे को टाल तो रहा है लेकिन खत्म नहीं कर रहा.
मतलब ये कि ऋषिगंगा पर जो झील बनी है वहां जाड़े के मौसम के चलते पानी ठंडा है और ठंड से मिट्टी और पत्थरों का जो ढेर है वो भी सॉलिड यानि मजबूत हो गया है. लेकिन अगर ये पानी झील से जल्द नहीं निकला तो ये बरसात में भारी मुसीबत खड़ी कर सकता है.
डॉ, डोभाल की माने तो बरसात के दौरान तेज बारिश झील का जल स्तर बढ़ाने में सहायक होगी. और इसके चलते मलबे में भी कटान हो सकता है. जिसके कारण झील कमज़ोर पड़ती जाएगी. और झील में इक्टठा हुआ पानी उस दौरान झील को तोड़ सकता है. जो बेहद भयावह रूप ले सकता है और अब से ज्यादा बड़ी तबाही ला सकती है.
डॉ डोभाल कहते हैं कि इस वक्त हमें वो उपाय करने चाहिए जिससे आने वक्त में ऋषिगंगा पर बनी ये झील खतरा न बनें. वहीं डॉ डोभाल कहते हैं कि राज्य में ग्लेशियर और इससे बनने बाली झीलों के आकंलन और अध्ययन के लिए एक स्थाई मैकेनिज्म की बेहद ज़रूरत है. जो पूरी संजीदगी के साथ इसलका अध्ययन करे.जिस तरह से जलवायु में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है उसके चलते ग्लेशियर कमज़ोर हो रहे हैं. और यही वजह है कि बाढ़ का खतरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इसलिए आपदा प्रबंधन तंत्र को इसे बेहद गंभीरता से लेने की जरूरत है. क्योंकि ग्लेशियर से उत्पन्न आपदा राज्य को नहीं बल्कि पूरे देश को प्रभावित कर सकती है.
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